नाटक से प्राप्त होता है शिक्षा, ज्ञान, मनोरंजन

दिल्ली अप-टु-डेट



नई दिल्ली। नाटक वह कला है जो मनोरंजन के साथ ज्ञान अनुभव व सीख भी देता है। किसी घटना को नाटकीय रूप से प्रस्तुत करके उस नाटक के पात्र उस मंत्र से यह संदेश देना चाहते है कि इस के प्रति व्यक्ति को सचेत रहना चाहिए। देश के अंदर तमाम नाटक कम्पनिया ड्रामा संगठन पहले हुआ करते थे और समाज में बहुत ही विनम्रता तथा सामाजिक सद्भावना तथा अनुशासन देखने को मिलता था। लेकिन आधुनिकता का जैसे ही धीरे-धीरे विकास हुआ और पुरानी परंपराये समाप्त होती गयी। 


आज समाज में सब कुछ मार्डन आधुनिक देखने को मिल रहा है और उस आधुनिकता में भी इतिहास की परंपराये डूब गयी है। समाज की नई युवा पीढ़ी न परहित करने वाले धर्म का अंत हो चुका है। इस समय के लोगो की सोच स्वयं के कार्य स्वयं का स्वार्थ सिद्ध करना रह गया है। वह इसके आगे कुछ भी नही सोचते है। पहले के समाज में व्याप्त कुरूतियों पर आधारित वे ड्रामा अथवा नाटक कम्पनिया उस घटना व कुरूतियों को बड़े ही रोमांचक ढंग से उस मंच से नाटक के रूप में प्रस्तुत कर समाज से वह कुरूति दूर भागना चाहती थी और साथ ही साथ लोगो का मनोरंजन भी होता था। 


जिससे आसानी पूर्वक समाज से वह कुरूति दूर हो जाती थी लेकिन जब से समाज के अंदर मोबाइल व कम्प्यूटर आया है तब से उस नाटकीय प्रथा का अंत हुआ और समाज में आज सिवाएं कुरूतियों के कुछ बचा ही नही है। सबसे ज्यादा किशोरा अवस्था के क्रिमिनल है और वह अधिक क्राइम कर रहे है और संविधान के अनुरूप उन्हें सजा दी जाती है। लेकिन क्या सरकारो ने इस संबंध में कोई टीम गठित की, कि देश का युवा सबसे ज्यादा क्राइम कि ओर बढ़ता जा रहा, यह क्राइम की ओर अग्रसर क्यो हो रहा है। क्योंकि यह शोध का विषय बन जाता है। इसलिए इस पर ध्यान देना जरूरी नही समझा गया। अगर इस पर अध्यन किया जाये तो निश्चित ही ऐसी घटनाओं में कमी आयेगी और देश का युवा उस दिमाग को अन्य क्षेत्र में लगायेगा। 


जिससे देश के विकास को एक नई गति एक नई राह और गति मिल सकती थी। वैसे देखा जाए तो इस प्रकार की घटनाओं के लिए दोषी सबसे ज्यादा आधुनिकता है। इस युग में जैसे ही मोबाइल युवा पीढ़ी को मिला और उस पर तमाम वह कार्यक्रम उन किशोर युवाओं को देखने को मिले व मिल रहे है जो उनकी उम्र के अनुसार देखने के योग्य नही है। जैसे रोमानटिक कथा कहानियां व यौन संबंध से संबंधित मूवी तथा अन्य ऐसे चलचित्र तो युवाओं की ज्ञानेन्द्रिया को बहका रहे है। जिस कारण यह आधुनिक पीढ़ी उस किशोर अवस्था में उन कृत्यों को करने के लिए लालयित हो रही है। तत्पश्चात् उस की हनक में यह गलत कदम उठा लेते है। 


देसी भावनाओं को उनके दिलों दिमाग से निकालने के लिए उन्हें नुक्कड़ नाटक नाटकीय मंचो से नाटक के द्वारा इससे दूर रहने के संदेश दिए जाये तभी बहुत बड़ा बदलाव लाया जा सकता है और देश के अंदर से क्राइम को कम करने का प्रयास किया जा सकता है। जिससे डूब रही नाटक कम्पनियों एवं ड्रामा कम्पनियों का संचालन शुरू हो जाएगा। बेरोजगारी को रोजगार मिलेगा और उन नाटको के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरूतिया भी समाप्त होगी उन बुराइयों की जड़े खत्म हो जायेंगयी तथा समाज के अंदर नाटक के माध्यम तथा रंग मंच से लोग युवा जाग्रित होंगे। मनोरंजन कर सकेंगे तथा साथ ही साथ ज्ञान, अनुभव, सकारात्मक विचारो एवं विकारो को भी आसानी से दूर कर सकेंगे।